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कविता

दिल एक मंदिर है

प्रभुनारायण पटेल


कुछ बड़े लोग
छोटों पर छुटपुट
बिजलियाँ गिराते हैं,
पर जब कोई दामिनी
उनके ही दामन पर
अचानक आ दरकती है
तो आँगन में उनके
कोहराम मच जाता है,
दंश की पीड़ा तब उन्हें
जीने नही देती,
संवेदनाओं के तकाजे तब
सब हरे हो जाते हैं।
दरअसल, कोई दामिनी
किसी दैन्य की
झंझा झकोर गर्जना है,
कलेजे वह पर केवल
गिरना भर जानती है,
कहाँ पर गिरेगी
किस पर गिरेगी
कुछ नहीं अनुमानती है,
पर, जिस किसी पर भी गिरती है
कलेजा जरूर चकनाचूर होता है,
आदमी नियति के हाथों का
एक अदना सा खिलौना है
तब बहुत मजबूर होता है।
मैं अक्सर सोचता रहता हूँ -
दिल एक मंदिर है
अंदर वह प्रेम का पुजारी
मानवीय कल्याण की
अनवरत साधना में
श्रद्धावनत है,
वह अपने पराए का
भेद करना नही जानता है,
और, एक असल इनसान के नाते
महल का बाशिंदा वह
झोपड़ी की पीड़ा को
बखूबी पहचानता है।


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